Poem on Mother in Hindi: साथियों दुनियां में कोई ऐसी कलम आज तक नहीं बनी हैं, जो माँ शब्द की परिभाषा लिख दे। कहते हैं कि संसार में माँ भगवान का दूसरा रूप होती है। माँ की ममता का कोई मूल्य नहीं हैं, वे लोग बहुत ही भाग्यशाली जिनकी माँ हैं।
कहते हैं कि जिनके सिर पर माँ का हाथ होता हैं, किस्मत भी उसका साथ नहीं छोड़ती है। इस पोस्ट में माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ (maa par poem in hindi) शेयर की है।
माँ पर लोकप्रिय कविताएं | Poem on Mother
वो है मेरी माँ (maa par kavita)
मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कराती जो
वो है मेरी माँ।
प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।
दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।
देवी नांगरानी
Read Also
घुटनों से रेंगते-रेंगते, “माँ!” मैं आज भी तेरी बच्ची हूँ.. -अमृता वर्मा जमीन पर जन्नत मिलती है कहाँ जोड़ लेना चाहे लाखों करोड़ो की दौलत आते हैं हर रोज फरिश्ते उस दरवाजे पर छिन लाती है अपनी औलाद की खातिर खुशियाँ वो लोग कभी हासिल नही कर सकते कामयाबी माँ की तस्वीर ही बहुत,बड़े से बड़ा मन्दिर सजाने को माँ का साथ यूँ चलता है ताउम्र आदमी संग माँ दिखती तो है जिस्म के बाहर सदा कभी गलती से भी बुरा ना सोचना माँ के बारे में मर कर भी बसी रहती है माँ धरती पर ही अ नीरज -नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ प्यारी प्यारी मेरी माँ लोरी रोज सुनाती है, जब उतरे आगन में धुप, देती चीजे सारी माँ, ऊँगली पकड़ चलाती है, ममता भरे हुए हातो से, देवी जैसी मेरी माँ, प्यारी प्यारी मरी माँ मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी ‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी जगदीश प्रसाद सारस्वत ‘विकल’
रुला देने वाली मदर डे कविता (Sad Poem on Maa)
कब पैरों पर खड़ी हुई,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ी हुई,
काला-टीका दूध मलाई
आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह,
माँ प्यार ये तेरा कैसा है?
सीधी-साधी, भोली-भाली,
मैं ही सबसे अच्छी हूँ,
कितनी भी हो जाऊ बड़ी,जमीन पर जन्नत (माँ) (Poem of Mother)
दोस्तों ध्यान से देखा करो अपनी मा
पर जोड़ ना पाओगे कभी माँ सी सुविधा
रहती है खुशी से प्यारी माएं जहाँ जहाँ
कभी खाली नही जाती माँ के मुहं से निकली दुआ
जो बात बात पर माँ की ममता में ढूँढते है कमियां
माँ से सुंदर दुनिया में नही होती कोई भी प्रतिमा
जैसे कदमों तले झुका रहता हो सदा आसमां
पर माँ है रूह में मौजुद बेपनाह होंसला
ध्यान रहे माँ ने ही रचा हर जीवन का घोंसला
कभी नही होता औलाद की खातिर उसके प्रेम का खात्माप्यारी प्यारी मेरी माँ (Best Poems on Mom)
सारे जग से न्यारी माँ…
थपकी दे सुलाती है….
प्यार से मुझे जगाती है….
प्यारी प्यारी मेरी माँ….
सुबह-शाम घुमाती है….
खाना रोज खिलाती है….
सारी जग से न्यारी माँ….
प्यारी प्यारी मेरी माँ…माँ और भगवान (Emotional Poems)
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ….. द्वारा कुसुम खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से माँ की दुआ तो हर हाल में कबूल होती है माना माँ की बोली कभी कभी कड़वी,खारी होती है माँ तो जीती है हजारों सदियों तक,वो कभी भी ना मरती है माँ क्या शै होती पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ बचपन में माँ कहती थी बचपन में माँ कहती थी मैं आज भी रुक जाता हूँ यकीन मानो, मैं माँ को मानता हूँ। दही खाने की आदत मेरी चाहे हम बड़े हो जाये मगर हम अपनी माँ के लिए तो बच्चे ही है… माँ कहती थी। घर से दही खाकर निकलो मैं माँ को मानता हूँ। आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ, बचपन में माँ कहती थी मैं माँ को मानता हूँ। मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीं पर लेकिन माँ को मानता हूँ
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथोँ से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँआबशारों-झरने (Heart Touching Poems on Mom)
माँ क्या शै होती, पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से
माँ के रहते जन्नत जमीन पर वसूल होती है
फरिश्ते भी जिसकी चाहत पाने को तरसते
माँ तो वो अदभुत अनोखा प्यारा फूल होती है
तुम से ज्यादा है कौन चमकीला,पूछ लेना ये बात तुम सितारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से
पर माँ हर गुड़ शक्कर,हर मीठे से प्यारी होती है
चाहे अनपढ़ ही क्यूं ना हो कोई भी माँ जमीन की
पर उसकी सीखों में जीवन जीने की बात छुपी सारी होती है
सुंदर होती है हर माँ तो,जमीन के हसीन से हसीन नजारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से
माँ हर रूह में,हर धड़कन में जीवन जीने का हौसला भरती है
हर देवता से बहुत ज्यादा बड़ी होती है माँ की शख्सियत,समझो इसे
रब भी वो कर नही सकता, जो औलाद की खातिर माँ करती है
बचा लेती है माँ अपनी औलाद को दुःख दर्द के बेदर्द अंगारो से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों सेमैं माँ को मानता हूँ (Hindi Poem on Mother)
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
कोई बात है जो डरा
देती है मुझे…
मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ।
गयी नहीं आज तक…
दही खाने की आदत मेरी
गयी नहीं आज तक..
तो शुभ होता है..
मैं आज भी हर सुबह दही
खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता….
मैं माँ को मानता हूँ।
भूत-प्रेत के किस्से खोफा पैदा करते हैं मुझमें,
जादू, टोने, टोटके पर मैं यकीन कर लेता हूँ।
कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….
मैं माँ को मानता हूँ।
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा
लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं
मैं किसी भगवान को नहीं मानता
में माँ को मानता हूँ।।
हज़ारों दुखड़े सहती है माँ
फिर भी कुछ ना कहती है माँ
हमारा बेटा फले औ’ फूले हमारे कपड़े कलम औ’ कॉपी बना रहे घर बँटे न आँगन रहे सलामत चिराग घर का बढ़े उदासी मन में जब जब नज़र का कांटा कहते हैं सब मनोज मेरे हृदय में हरदम मनोज ‘भावुक’ माँ के होते कभी नही होती जीवन में कठिनाई है दिखता है जिसमे केवल स्नेह माँ तो वो नजर है लोक परलोक की, माँ ही होती है सबसे खूबसूरत आत्मा माँ ही धरा पर जीवन लिखने वाली अनोखी कलम है माँ राहत, माँ चाहत, माँ पहचान, माँ ही सम्मान है माँ जमीन पर रहकर जन्नत का अहसास दिलाती है माँ सितार, माँ बहार माँ ही देवों की अदभुत बोली है माँ सदा सुखों से कराती अपनी औलाद की मुलाकात है जो महकाती सांसो को माँ की चाहत वो कस्तूरी है माँ का प्रेम ही दुनिया का सबसे सुगंधित चन्दन है नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ मेरे सर पर भी माँ की दुवाओं का साया होगा, माँ की आघोष में लौट आया है वो बेटा फिर से.. अब उसकी मोहब्बत की कोई क्या मिसाल दे, की थी सकावत उमर भर जिसने उन के लिए और माँ के सजदे को कोई शिर्क ना कह दे जितना मैं पढता था, शायद उतना ही वो भी पढ़ती, मेरी कलम, मेरी पढने की मेज़, उसपर रखी किताबे, मेरी नोट-बुक पर लिखे हर शब्द, वो सदा ध्यान से देखती, अगर पढ़ते पढ़ते मेरी आँख लग जाती, तो वो जागती रहती, और मेरी परीक्षा के दिन, मुझसे ज्यादा उसे भयभीत करते थे, वो रात रात भर, मुझे आकर चाय काफी और बिस्कुट की दावत, अगर गलती से कभी ज्यादा देर तक मैं सोने की कोशिश करता, मेरे परीक्षा परिणाम को, वो मुझसे ज्यादा खोजती रहती अखबार में, जितना जितना मैं आगे बढ़ता रहा, शायद उतना वो भी बढती रही, पर उसे सिर्फ एक ही चाह रही, सिर्फ एक चाह, मेरे ऊँचे मुकाम की, वो खुदा से बढ़कर थी पर मैं ही समझता रहा उसे नाखुदा की तरह जैसे,
यही तो मंतर पढ़ती है माँ
बड़े जतन से रखती है माँ
इसी से सबकी सहती है माँ
यही दुआ बस करती है माँ
बहुत याद में रहती है माँ
जिगर का टुकड़ा कहती है माँ
ईश्वर जैसी रहती है माँमाँ मतलब परछाई (Maa pe Kavita)
माँ ताउम्र बनकर रहती अपनी औलाद की परछाई है
कभी नही मरती कोई भी माँ, वो तो परी अजर अमर है
माँ के कदमों में सदा झुका रहता है पूर्ण परमात्मा
समझो औरत का जन्म ही धरा पर जीवन का जन्म है
माँ जरूरत, माँ मूरत, माँ निदान, माँ ही अभिमान है
माँ छोटे परिंदों को हौसलों का बड़ा आकाश दिलाती है
माँ अधिकार, माँ प्यार, माँ कंगन, माँ ही चंदन रोली है
पहुंचाती जो रूह को सकून माँ वो चांदनी रात है
जिस पर है सारी धरा आश्रित माँ ही वो धुरी है
नीरज की ओर से हर माँ को शत शत वन्दन हैमाँ पर रुला देने वाली कविता (meri maa poem in hindi)
इसलिए समुन्दर ने मुझे डूबने से बचाया होगा
शायद इस दुनिया ने उसे बहुत सताया होगा
पेट अपना काट जब बच्चों को खिलाया होगा
क्या हाल हुआ जब हाथ में कजा आया होगा
कैसे जन्नत मिलेगी उस औलाद को जिस ने
उस माँ से पैहले बीवी का फ़र्ज़ निभाया होगा
इसलिए उन पैरों में एक स्वर्ग बनाया होगामाँ के आँचल पर कविता (poem on maa in hindi)
मेरी किताबों को वो मुझसे ज्यादा सहज कर रखती थी,
मुझसे ज्यादा उसे नाम याद रहते, संभालती थी किताबे,
चाहे उसकी समझ से परे रहे हो, लेकिन मेरी लेखनी देखती थी,
और जब मैं रात भर जागता, तब भी वो ही तो जागती रहती,
मेरे परीक्षा के नियत दिन रहरह कर, उसे ही भ्रमित करते थे,
वो करती रहती सब तैयारी, बिना थके बिना रुके, बिन अदावात,
वो आकर मुझे जगा देती प्यार से, और मैं फिर से पढना शुरू करता,
और मेरे कभी असफल होने को छुपा लेती, अपने प्यार दुलार में,
मेरी सफलता मेरी कमियाबी, उसके ख्वाबों में भी रंग भरती रही,
मेरी कमाई का लालच नहीं था उसके मन में, चिंता रही मेरे काम की,
वो मेरी माँ थी, जो मुझे जमीं से आसमान तक ले गयी, ना जाने कैसे…
क्या सीरत क्या सूरत थी
माँ ममता की मूरत थी
पाँव छुए और काम बने बस्ती भर के दुख सुख में सच कहते हैं माँ हमको मंगल नसीम माँ की ममता करुणा न्यारी, हर एक साँस की कहानी है तू तेरी गोदी से बढकर नही कोई भी चमन तू अदभुत साँस बनकर जिस्म को महकाती दुआ है तेरी कोख से हो हर बार जन्म नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ हे जननी, हे जन्मभूमि, शत-बार तुम्हारा वंदन है। बाजुओं में खींच के आ जायेगी जैसे क़ायनात ज़िन्दगी के सफ़र मै गर्दिशों में धुप में प्यार कहते हैं किसे, और ममता क्या चीज़ है, सफा-ए- हस्ती पे लिखती है, असूल-ए- ज़िन्दगी, जब ज़िगर परदेस जाता है ए नूर-ए- नज़र, लेके ज़मानत में रज़ा-ए- पाक की, काँपती आवाज़ में कहती है बेटा अलविदा जब परेशानी में फँस जाते हैं हम परदेस में, मरते दम तक आ सका न बच्चा घर परदेस से, बाद मरने के बेटे की खिदमत के लिए, साल के बाद अर्चना हरित बहुत याद आती है माँ
अम्मा एक महूरत थी
एक अहम ज़रूरत थी
तेरी बहुत ज़रूरत थीमेरी प्यारी माँ पर कविताएं (hindi poem on maa)
जैसे दया की चादर
शक्ति देती नित हम सबको,
बन अमृत की गागर
साया बन कर साथ निभाती,
चोट न लगने देती
पीड़ा अपने उपर ले लेती,
सदा सदा सुख देती
माँ का आँचल सब खुशियों की,
रंगा रंग फुलवारी
इसके चरणों में जन्नत है,
आनन्द की किलकारी
अदभुत माँ का रूप सलोना,
बिलकुल रब के जैसा
प्रेम के सागर सा लहराता,
इसका अपनापन ऐसा….हर एक साँस की कहानी है तू
परी कोई प्यारी आसमानी है तू
जीती मरती है तू औलाद की खातिर
सिर्फ ममता की भूखी दीवानी है तू
हमेशा फरिश्तों से घिरा रहता था तन
गुजरा है तेरे संग हर लम्हा जन्नत में
ताउम्र महसूस होती रहेगी तेरी चाहतों की तपन
इश्क करना फितरत है तेरी
हर देवता की जानी पहचानी है तू
हसीन जन्नत खुद तेरे करीब आ जाती
अजीब कशिश है तेरी चाहतों में माँ
तू रोते बालक को पल में हंसाती
कोई नही तुझसे बढकर खुबसुरत जग में
हजारों परियों की रानी है तू
भूलकर भी कभी ना हो तुझे कोई गम
तुझ जैसा कोई और चाह नही सकता
तू ही सच्ची दिलबर तू ही सच्ची हमदम
हर करिश्मे से है तू बड़ी
खुदा की जमीन पर मेहरबानी है तूसर्वप्रथम माँ तेरी पूजा
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।
तेरी नदियों की कल-कल में सामवेद का मृदु स्वर है।
जहाँ ज्ञान की अविरल गंगा, वहीँ मातु तेरा वर है।
दे वरदान यही माँ, तुझ पर इस जीवन का पुष्प चढ़े।
तभी सफल हो मेरा जीवन, यह शरीर तो क्षण-भर है।
मस्तक पर शत बार धरुं मै, यह माटी तो चन्दन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।१।।
क्षण-भंगुर यह देह मृत्तिका, क्या इसका अभिमान रहे।
रहे जगत में सदा अमर वे, जो तुझ पर बलिदान रहे।
सिंह-सपूतों की तू जननी, बहे रक्त में क्रांति जहाँ,
प्रेम, अहिंसा, त्याग-तपस्या से शोभित इन्सान रहे।
सदा विचारों की स्वतन्त्रता, जहाँ न कोई बंधन है।
सर्वप्रथम माँ तेरी पूजा, तेरा ही अभिनन्दन है।।रुला देने वाली कविता
अपने बच्चे के लिए ऐसे बाहें फैलाती है माँ
जब कोई साया नहीं मिलता तब बहुत याद आती है माँ
कोई उन बच्चों से पूछे जिनकी मर जाती है माँ
इसलिए तो मक़सद-ए- इस्लाम कहलाती है माँ
कुरान लेकर सर पे आ जाती है माँ
पीछे पीछे सर झुकाए दूर तक जाती है माँ
सामने जब तक रहे हाथों को लहराती है माँ
आंसुओं को पोंछने ख्वाबों में आ जाती है माँ
अपनी सारी दुआएं चौखट पे छोड़ जाती है माँ
रूप बेटी का बदल के घर में आ जाती है माँमाँ के लिए (Hindi Poetry on Mother)
आया है यह दिन
करने लगे हैं सब याद
पल छिन
तुम ना भूली एक भी चोट या खुशी
ना तुमने भुलाया
मेरा कोई जन्म दिन
और मैं
जो तुम्हारी परछाई हूँ
वक्त की चाल-
रोज़गार की ढाल
सब बना लिए मैंने औज़ार
पर माँ!
नासमझ जान कर
माफ़ करना
करती हूँ तुमको प्यार
मैं हर पल
खामोशी तनहाई में
अर्पण किए
मैंने अपनी श्रद्धा के फूल तुमको
जानती हूँ
मिले हैं वो तुमको
क्योंकि
देखी है मैंने तुम्हारी निगाह
प्यार गौरव से भरी मुझ पर
जब भी मैं तुम्हारे बताए
उसूलों पर चलती हूँ चुपचाप
माँ!
मुझमें इतनी शक्ति भर देना
गौरव से सर उठा रहे तुम्हारा
कर जाऊँ ऐसा कुछ जीवन में
बन जाऊँ
हर माँ की आँख का सितारा
आज मदर्स डे के दिन
“अर्चना” कर रही हूँ मैं तुम्हारी
श्रद्धा, गौरव और विश्वास के चंद फूल लिएमेरी प्यारी माँ पर कविताएं (Poetry on Mother)
जब भी होती थी मैं परेशान
रात रात भर जग कर
तुम्हारा ये कहना कि
कुछ नहीं… सब ठीक हो जाएगा।
याद आता है…. मेरे सफल होने पर
तेरा दौड़ कर खुशी से गले लगाना।
याद आता है, माँ तेरा शिक्षक बनकर
नई-नई बातें सिखाना
अपना अनोखा ज्ञान देना।
याद आता है माँ
कभी दोस्त बन कर
हँसी मजाक कर
मेरी खामोशी को समझ लेना।
याद आता है माँ
कभी गुस्से से डाँट कर
चुपके से पुकारना
फिर सिर पर अपना
स्नेह भरा हाथ फेरना।
याद आता है माँ
बहुत अकेली हूँ
दुनिया की भीड़ में
फिर से अपना
ममता का साया दे दो माँ
तुम्हारा स्नेह भरा प्रेम
बहुत याद आता है माँ
कभी जो गुस्से में आकर मुझे डांट देती
जो रोने लगूं में मुझे वो चुपाती
जो में रूठ जाऊं मुझे वो मनाती,
मेरे कपड़े वो धोती मेरा खाना बनाती वो सबको रुलाती वो सबको हंसाती जब बुज़ुर्गी में उसके दिन ढलने लगते दिल से उसके फिर भी सदा दुआएं निकलती माँ के आँचल के आसपास कभी भी बेरहम लू नही आती फैंक आते है माँ बाप को वृद्धाश्रम जबरदस्ती लावारिस बना कर मैं तो मांगता हूँ हर बार रब से रहमतें मजबूरों की खातिर जो अमीर जुड़े है जमीन से,कभी भी पीछे नही हटते किसी की मदद को गुजर जाता है हर वो दिन सकून से,चैनो अमन से,आराम से अपना कहते है लोग के नीरज बिन उर्दू वजन नही आता शायरी में नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ मेरी ही यादों में खोई जीवन भर दुःख के पहाड़ पर जब-जब हम लय गति से भटकें व्रत, उत्सव, मेले की गणना तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से पल-पल जगती-सी आँखों में जब-जब ये आँखें धुंधलाती हम तो नहीं भगीरथ जैसे तुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे जयकृष्ण राय तुषार मुझको हर हाल में बख़्शेगा उजाला अपना हर शै से ऊपर जग मे माँ होती है, हर दुःख को अपने आँचल मे छुपाती, धरती पर माँ ही भगवान की पहचान होती है, हर आफत हर परेशानी खुद दूर होती है, सिर्फ एक माँ है जो कभी न नाराज होती है, लोगों चाहे मत संभालो अपनी जां को, नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान। करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम। विद्या पाई आपने बने महा विद्वान। कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान। माता देती सपन है बच्चों को कल्यान। बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन। माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह। सरदार कल्याण सिंह माँ पर मार्मिक कविता गहन अंधेरों को उजालों में बदलती है फैला रूह में हर वक्त उजाला होता है माँ ही फरिश्ता माँ ही पैगम्बर होती है निरंतर जो बहती माँ तो वो अदभुत नदी है माँ से ही औलाद की औकात होती है जो काट देती दर्दों को माँ वो दुआ होती है नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’ लब्बो पर उसके कभी बदुआ नहीं होती माँ बहुत गुस्से में होती है तो बस रो देती है अभी जिन्दा है मेरी माँ मुझे कुछ नहीं होगा माँ दुआ करती हुई खुआब में आ जाती है मेरी खुआइश है की मै फिर से फ़रिश्ता हो जाऊ माँ के यूँ कभी खुलकर नहीं रोना चूल्हे की धागे-धागे सिर पर फटी-पुरानी कौशलेन्द्र
जो न खाऊं में मुझे अपने हाथों से खिलाती
जो सोने चलूँ में मुझे लोरी सुनाती,
वो दुआओं से अपनी बिगड़ी किस्मत बनाती
वो बदले में किसी से कभी कुछ न चाहती,
हम खुदगर्ज़ चेहरा अपना बदलने लगते
ऐश-ओ-इशरत में अपनी उसको भूलने लगते
खुशनसीब हैं वो लोग जिनके पास माँ है।मां की खुशबू, माँ पर कविता हिंदी में (Poem in Hindi for Mother)
मुर्ख है वो लोग तो जिन्हें माँ के किरदार से खुशबू नही आती
पर माँ बाप को कभी भी लावारिस औलाद में भी बदबू नही आती
अपने जहन में खुद के लिये मांगने को कोई भी जुस्तजू नही आती
कभी भी उनकी बातों से अमीरी की गंदी,मतलबी बू नही आती
जिस दिन अ मेरी हसीन दिलरुबा ख्यालों में तू नही आती
अरे हम लिखते है तबाही,जबकि हमको भाषा उर्दू नही आतीमाँ तुम गंगाजल होती हो (Poem on Mother in Hindi)
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगा-जल होती हो!
तुम पीती आँसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सर
तब-तब तुम मादल होती हो।
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती हो
ज्यादा निर्मल होती हो।
मेरी ख़ातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियाँ बजाती
तब-तब तुम काजल होती हो।
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें
तुम तो स्वयं कमल होती हो।मेरी प्यारी माँ पर कविताएं (Poem on Mother in Hindi)
चाँद रिश्ते में तो लगता नहीं मामा अपना
मैंने रोते हुएपोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
हम परिन्दों कीतरह उड़ के तो जाने से रहे
इस जनम में तो न बदलेंगे ठिकाना अपना
धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारेघर के
हम समझते थे कि काम आएगा बेटा अपना
सच बता दूँ तो ये बाज़ार-ए-मुहब्बत गिर जाए
मैंने जिस दाम में बेचा है ये मलबा अपना
आइनाख़ाने में रहने का ये इनआम मिला
एक मुद्दत से नहीं देखा है चेहरा अपना
तेज़ आँधी में बदल जाते हैं सारे मंज़र
भूल जाते हैं परिन्दे भी ठिकाना अपना..!माँ के लिए कविता (Maa Par Kavita in Hindi)
एक अक्षर मे छुपी पूरी दुनिया होती है।
जितने लाडों से पालती है माँ बच्चो को,
बच्चों की नजर मे उतनी कद्र कहाँ होती है।।
खुद भूखी रहकर भी बच्चों को खिलाती।
गुणों के भंडारों से तर बतर होती है हर माँ
कभी ना अपने बच्चों को कुछ बुरा सिखाती।।
उसके बच्चों मे छुपी उसकी जान होती है।
कुछ देर जरुर बैठा करो अपनी माँ के पास,
माँ सिर्फ माँ नहीं माँ तो तजुर्बो की खान होती है।।
माँ ही जमीं पर जन्नत से बहता नूर होती है।
गलती से भी कभी कोई गलती न करती वो,
वो तो बस कभी कभी बच्चों की जिद के आगे मजबूर होती है।।
मूक बच्चे की माँ ही हमेशा आवाज होती है।
कोई भी सम्मान बड़ा नहीं होता माँ की सेवा के आगे
अरे लोगों सुखी माँ ही धरती पर सबसे बड़ा ताज होती है।।
पर सम्भालों जरुर अपनी प्यारी माँ को।
हर काम मे खुद ब खुद हो जायेगी बरकत,
कभी हल्के मे मत लेना उसकी दुआ को।।माँ के नाम (Poem on Mother in Hindi)
आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।१।।
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।।२।।
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।।३।।
पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।।४।।
उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।।५।।
उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।।६।।
अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।।७।।
मां सबकुछ है (Mother Poem in Hindi)
औलाद के हर दुःख को पल में छलती है
मजबूर हो जाते है देव भी उसकी ममता के आगे
खुदा से ज्यादा धरती पर माँ की चलती है
माँ का प्यार तो अमृत का प्याला होता है
सोचते ही हर दुआ खुद पूरी हो जाती है
माँ का रूप ही सबसे बड़ा शिवाला होता है
माँ दिखती है बाहर पर रूह के अंदर होती है
कोई श्रृंगार बड़ा नही माँ की मुस्कान के आगे
धरती पर माँ ही सबसे ज्यादा सुंदर होती है
आजकल की बात छोड़ो माँ तो एक सदी है
हर शै छोटी होती है माँ के आकार के आगे
माँ सारे जहानो को मिलाकर भी बड़ी होती है
माँ ही धर्म माँ कर्म माँ ही जात होती है
माँ के रहते चाहे मत ध्यान करों किसी देव का
माँ के रूप में हर रोज देवों से मुलाकात होती है
माँ अथाह सागर माँ प्रेम का कुआँ होती है
चाहे कितनी मर्जी देती हो माँ औलाद को गालियाँ
पर कभी ना माँ के लबों पर बददुआ होती हैमाँ को समर्पित कविता (Hindi Poems on Mother)
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती
इस तरह वो मेरे गुन्हो को धो देती है
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसु
मुदतो माँ ने नहीं धोया दुपटा अपना
मै जब घर से निकलता हूँ तो दुआ भी साथ चलती है मेरे
जब भी कश्ती मेरी शेलाब में आ जाती है
ए अँधेरे देख ले तेरा मुंह कला हो गया
माँ ने आंखे खोल दी और घर में उजाला हो गया
माँ से इस तरह लिपटू की फिर से बच्चा हो जाऊ
जहाँ बुनियाद होती है वहा इतनी नमी अच्छी नहीं होतीमेरी प्यारी माँ पर कविताएं (Poem for Mother in Hindi)
जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ!
भीतर-भीतर
बलके फिर भी
बाहर नहीं उबलती माँ!
यादें बुनती,
खुद को
नई रुई सा धुनती,
दिन भर
तनी ताँत सी बजती
घर-आँगन में चलती माँ!
रखे हुए पूरा घर
अपनी-
भूख-प्यास से ऊपर,
घर को
नया जन्म देने में
धीरे-धीरे गलती माँ!
मैली धोती,
साँस-साँस में
खुशबू बोती,
धूप-छाँह में
बनी एक सी
चेहरा नहीं बदलती माँ!