जब-जब पृथ्वी पर अधर्म, पाप, अस्यृश्यता आदि ने अपना आधिपत्य स्थापित किया तब-तब स्वयं प्रभु ने कभी राम, कभी
इस लेख में हम बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास विस्तार से जानेंगे। जिसमें रामदेव जी का जन्म कब हुआ, बाबा रामदेव जी का जन्म स्थान, बाबा रामदेव जी के परिवार, विवाह, संतान, बाबा रामदेवजी के पर्चे, बाबा रामदेव जी की समाधी आदि के बारे में जानेंगे।
विषय सूची
बाबा रामदेव जी का जीवन परिचय एक नजर में
नाम
बाबा रामदेव जी
अन्य नाम
रामसा पीर, रूणीचा रा धणी, बाबा रामदेव
जन्म
चैत्र सुदी पंचमी, विक्रम संवत 1409
जन्मस्थान
रूणीचा (रामदेवरा), राजस्थान
जीवनकाल
33 वर्ष
पिता
अजमल जी तंवर
माता
मैनादे
भाई
बीरमदेव
बहन
सगुना और लांछा (चचेरी बहनें)
पत्नी
नैतलदे (विक्रम संवत 1426)
संतान
सादोजी और देवोजी (दो पुत्र), फूल कँवर (पुत्री)
मुख्य-मंदिर
रामदेवरा, जैसलमेर (राजस्थान)
प्रसिद्धि
लोकदेवता, समाज सुधारक
वंश
तंवर
सम्प्रदाय/पंथ
कामड़िया
धर्म
हिन्दू
घोड़े का नाम
लीलो
गुरू
बालीनाथ
निधन (जीवित समाधी)
भादवा सुदी एकादशी, विक्रम संवत 1442
समाधी-स्थल
रामदेवरा (रुणिचा नाम से विख्यात)
बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास (बाबा रामदेव की संपूर्ण कथा)
युगों-युगों से यह चलता आ रहा है कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म, पाप, अस्यृश्यता ने मृत्युलोक पर अपना साम्राज्य स्थापित किया तब ईश्वर ने स्वयं प्रकट होकर पापों से पृथ्वी को मुक्त करवाया है।
जब भी पृथ्वी पर पाप बढ़ाते हैं तब ईश्वर ने कभी राम, कभी
इसीलिए भैरव राक्षस का वध एवं समाज में सामाजिक समरसता की अलख जगाने के लिए बाबा रामदेव जी का अवतार हुआ।
यूं तो भारतवर्ष विभिन्न धर्म संप्रदाय एवं जातियों का देश रहा है, जहां समय-समय पर विभिन्न धर्म, संप्रदाय के अपने-अपने देवी-देवता, पीर-पैगम्बर एवं सती-जती हुए हैं तथा सभी धर्मों के अपने-अपने पूजा स्थल, मंदिर, चर्च, मस्जिद एवं मकबरे उनके अनुयायियों की आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र बने हुए हैं, जहां भक्तजन अपने-अपने तरीके से उन आस्था के केंद्रों पर अपनी मनोकामना पूरी होने एवं मन्नत मांगने हेतु श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने आपको धन्य समझते हैं।
मगर एक ऐसा पूर्ण महापुरुष जिसने जाति, धर्म, संप्रदाय, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी का भेद मिटाकर मानव मात्र को प्रभु का रूप समझ कर मानवता एवं सर्व धर्म समभाव का संदेश देकर कृष्ण के अवतार होने का अहसास कराया, जिसे मुसलमान रामसा पीर के नाम के मानकर उनकी समाधि पर शीश नवाते हैं तो हिन्दू कृष्णवतारी बाबा रामदेव मानकर अपने आप को पापों से मुक्त मानता है।
परमाणु परीक्षण के कारण विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके पोकरण कस्बे से 12 किमी. उत्तर दिशा में स्थित विख्यात नगरी रुणीचा धाम जिसे लोग रामदेवरा कहते हैं, वहां पर प्रति वर्ष भादवा महीने की शुक्ला द्वितीया से अंतर प्रांतीय मेला शुरू होता है, यह मेला दूज से एकादशी तक लगता है।
तीर्थ यात्रा कर वापस राजधानी दिल्ली आने पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा राज गद्दी वापस देने से मनाकर देने पर धर्म प्रिय सम्राट अनंगपाल तोमर दिल्ली छोड़कर पाटन (सीकर) आकर अपनी अलग राजधानी बनाईं। उन्हीं अनंगपाल तोमर के वंशज अजमाल जी (तंवर) थे।
अजमाल जी तंवर के कोई संतान नहीं थी। इस कारण राजा अजमाल एवं उनकी राणी मैणादे हर समय संतान नहीं होने के कारण बैचेन एवं दुखी रहते थे।
अजमाल तंवर द्वारकाधीश भगवान कृष्ण के भक्त होने के कारण कई बार द्वारिका की यात्रा कर चुके थे।
एक बार वर्षा के मौसम में अजमल जी सुबह-सुबह शौचादि से निवृत होकर वापस अपने महल की ओर आ रहे थे तो उन्हीं के गांव के किसान खेती करने के लिए अपने खेतों की तरफ जा रहे थे।
सामने से अजमल जी तंवर को आते देखा तो किसान वापस अपने घरों की तरफ मुड़ गए। अजमल जी आश्चर्यचकित हो गए और किसानों को बुलाकर वापस घरों की ओर मुड़ने का कारण पूछा तो किसानों ने घबराकर यूं ही बीज, बैल, हल आदि पीछे भूल जाने का बहाना बनाया।
मगर उस जवाब से अजमल संतुष्ट नहीं हुए और किसानों से कहा कि तुम जो भी बात हो सच-सच बता दो, तुम्हें सातों गुनाह माफ है।
तब किसानों ने बताया कि अन्नदाता आप निसंतान है और आप के सामने आ जाने के कारण अपशगुन हो गए हैं।
अजमलजी पर मानो पहाड़ टूट गया और मन ही मन अपने आपको कोसते हुए भगवान द्वारिकाधीश का स्मरण कर कहा कि प्रभु मैं जिस गांव का ठाकुर हूं, उस गांव के लोग मेरा मुंह तक नहीं देखना चाहते तो मेरा जीना बेकार है, यह सोच अजमल जी घर पहुंचे।
अजमल जी को दुखी देखकर रानी ने कारण पूछा तो सब बात अजमल ने रानी को बताई तो रानी भी बहुत दुखी हुई, मगर अपने दुख तो अंदर दबाकर अजमल जी से कहा कि आप एक बार द्वारिका जाकर भगवान श्री कृष्ण से विनती करें व अपनी मनोकामना जरूर पूरी होगी।
तब अजमल जी ने द्वारिका जाकर पागलों की भांति पुजारी से बोले कि बता तेरा भगवान कहां है?, नहीं तो तुझे और इस पत्थर को मूर्ति दोनों को तोड़ दूंगा तो पुजारी ने पागल समझ कर कहा कि सागर में जहां पर वो सबसे तेज जल भंवर पड़ रहा है, उस जगह समुद्र में भगवान आराम कर रहे हैं तो अजमल जी को तो भगवान पर दृढ़ विश्वास था, इसलिए श्रद्धा थी और वे सीधे समुद्र में कूद गए।
समुद्र में शेषनाग की शैया पर प्रभु के दर्शन कर अजमल जी भगवान द्वारिकाधीश से वर मांगा कि प्रभु मेरी ही प्रजा मेरा मुंह तक नहीं देखना चाहती है। इसलिए मेरे भी आप जैसा सुंदर पुत्र रत्न हो, भगवान द्वारिकाधीश ने कहा मेरे जैसा तो मैं ही हूं, तब अजमल जी तंवर ने कहा कि प्रभु आपको ही मेरे घर पुत्र रूप में आना होगा। यह वचन ले अजमलजी वापस आए।
प्रचलित लोक धारणाओं के अनुसार अजमल जी के घर पहले पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम बिरमदेव रखा गया और उसके बाद विक्रम संवत 1409 चैत्र सुदी पंचमी के दिन बाबा रामदेव जी का जन्म हुआ।
कलयुग के अवतारी बाबा रामदेव ने अपने शैशव काल में ही दिव्य चमत्कारों से देव पुरुष की प्रसिद्धि पा ली थी।
प्रचलित लोक गाथाओं के अनुसार बाबा रामदेव ने अपने बाल्यकाल में ही माता की गोद में दूध पीते हुए चूल्हे पर से उफनते हुए दूध के बर्तन को नीचे रखना, कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना, स्वारथिये सुथार को सर्पदंश से मरने के बाद वापस जिंदा करना आदि कई है।
ज्यों-ज्यों बाबा रामदेवजी किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे थे, उनके दैविक पुरुष होने के चर्चे दूर-दूर तक फैल रहे थे।
प्रचलित गाथा के अनुसार कृष्णावतार बाबा रामदेव जी भैरव राक्षस के आतंक को मिटाने के लिए ही पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे।
एक दिन बाबा रामदेव जी अपने साथियों के साथ गेंद खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद को इतना दूर फैंक दिया कि सभी साथियों ने अपने आपको गेंद लाने में असमर्थता जताते हुए कहा कि आपको ही गेंद लानी पड़ेगी तो बाबा रामदेव गेंद लाने के बहाने वर्तमान पोकरण की घाटी पर स्थित साथलमेर आ कर भैरव के अत्याचारों से लोगों को मुक्त करवाना था।
बाबा रामदेव जी के बालक रूप में सुनसान पहाड़ी पर अकेले देखकर पहाड़ी पर धूना लगाए बैठे बालीनाथ जी ने देखा तो कहा कि बालक तू कहां से आया है, जहां से आया है वापस चला जा, यहां पर रात को भैरव राक्षस आएगा।
बालीनाथ जी ने कहा कि यह आदम खोर राक्षस तुझे खा जाएगा, तब बाबा रामदेव जी ने रात के समय वहां पर रुकने की प्रार्थना की तो बालीनाथ जी ने अपनी कुटिया (आश्रम) में पुरानी गुदड़ी ओढ़ाकर बालक रामदेव को चुपचाप सो जाने को कहा।
अर्द्धरात्रि के समय भैरव राक्षस ने वहां आकर बालीनाथ जी से कहा कि आप के पास कोई मनुष्य है, मुझे मानुषगंध आ रही है तो बालीनाथ जी ने भैरव से कहा कि यहां पर तो तूने बारह-बारह कोस तक तो पक्षी भी नहीं छोड़ा है मनुष्य कहां से आया।
तब बाबा रामदेव ने गुरु बाली नाथ द्वारा चुपचाप सो जाने का आदेश दिए जाने के कारण बोले तो कुछ नहीं, मगर अपने पैर से गुदड़ी को हिलाई तो भैरव की नजर गुदड़ी पर पड़ी तो गुदड़ी को खींचने लगा।
मगर बाबा के चमत्कार से गुदड़ी द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ने लगी तो बालीनाथ जी महाराज ने सोचा कि यह कोई सामान्य बालक तो नहीं है जरूर कोई दिव्य बालक है।
गुदड़ी को खींचते-खींचते भैरव राक्षस हांफ कर भागने लगा तो बाबा रामदेव जी ने उठकर बालीनाथजी महाराज से आज्ञा लेकर बैरव राक्षस को वध कर लोगों को उसके आंतक से मुक्त किया।
भैरव राक्षस को वध करने के बाबा रामदेवजी भैरव राक्षस की गुफा से उत्तर दिशा की तरफ कुंआ खुदवा कर रुणीचा गांव बसाया।
बाबा रामदेवजी के विद्य चमत्कारों के चर्चें दूर-दूर तक सूर्य के प्रकाश की भांति फैलने लगे। उस समय मुगल साम्राज्य होने के कारण कट्टर पंथ भी चरम सीमा पर था।
एक बार बाबा रामदेव जी की परीक्षा लेने के लिए पांच पीर आये, उस समय बाबा रामदेव जी जंगल में घोड़ों को चरा रहे थे और पीरों को देखकर पूछा आप कहां से आएं है और कहां जायेंगे?
तो उन पीरों ने अपने आने का पूरा वृतांत सुनाया तो बाबा रामदेवजी ने बड़े आदर सत्कार के साथ उन पीरों को भोजन परोस कर पीरों से भोजन करने को कहा तो उन पांचों पीरों ने दूसरे के बर्तन में खाना खाने को मना करते हुए कहा कि हम तो अपने ही बर्तनों में भोजन करते है और उन बर्तनों को अपने मक्का (सऊदी अरब) पर ही भूल आए है।
तब बाबा रामदेव जी उनके द्वारा परीक्षा लेने की बात को समझते हुए तुरंत हाथ पसारा और वहीं कटोंरे उन पीरों को दिए और कहा कि अपने अपने कटोंरे को पहचान कर ले लो तो उन पीरों ने नमन करते हुए कहा कि हम तो पीर है, आप पीरों के भी पीर कह कर रामसापीर की उपाधि दी और कहा कि आज से मुसलमान भी आपको रामसापीर के नाम से मानेगें।
तब पीरों द्वारा भोजन करने के बाद दातुन करके दातुन की लकड़ियों से लगाई गई पांच पीपलियों के अवशेष आज भी रामदेवरा से पूर्व दिशा में 10 किमी. पांच पीपली स्थान पर दूर मौजूद है। वहां पर भी कई यात्री दर्शानार्थ जाते हैं। बाबा रामदेव दिव्य पुरुष होने के साथ-साथ एक महान समाज सुधारक और अछूतोद्वारक भी थे।
उस समय अस्पृश्यता एवं सांप्रदायिकता ने समाज को बुरी तरह जकड़ रखा था। मगर बाबा रामदेव ने क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर भी अछूत समझी जाने वाली जातियों को गले लगाया।
उनके घरों में जाकर उनके साथ भजन सत्संग करना दलित और हीन समझने जाने वाले लोगों के साथ उठने-बैठने को लेकर उनके रिश्तेदारों तक ने उनके यहां आना-जाना व बोलना बंद कर दिया था। मगर बाबा रामदेव जी ने इन सबकी परवाह किए बिना सामाजिक कुरितियों से जारी रखा।
उसी के फलस्वरूप अछूत समझी जाने वाली बाबा की अनन्य भक्त मती डालीबाई ने बाबा रामदेव से पहले समाधि ली। आज बाबा के भक्तों की संख्या पिछड़ी समझी जाने वाली जातियों में अधिक है।
बाबा रामदेव जी ने अपने 33 वर्ष की अल्प आयु में अनेक चमत्कार और समाज सुधार के कार्य कर वर्तमान रामसरोवर की पाल पर भादवा सुदी एकादशी विक्रम संवत 1442 को जीवित समाधि ली।
इसी कारण बीज भी आशावादी प्रवृति का घोतक है और दूज को बीज कारूप देते हुए बाबा ने बीज व्रत का विधान रचा ताकि उत्तरोतर बढ़ते चंद्रमा की तरह ही ब्रत करने वाले के जीवन में आशावादी प्रवृति का संचार हो सके।
प्रात:काल नित्कयर्म से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें। (इससे पूर्व रात्रि व दूज की रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करें) फिर घर में बाबा के पूजा स्थल पर पगलिये या प्रतिमा जो भी आपने प्रतिष्ठित कर रखी हो, उसका कच्चे दूध व जल से अभिषेक करें और गूगल धूप खेवें।
तत्पश्चात पूरे दिन अपने नित्य कर्म बाबा को हर पल याद करते हुए करें, पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीँ करें। चाय, दूध, कॉफी व फलाहार लिया जा सकता है।
वैसे तो बीज ब्रत में व अन्य व्रतों में कोई फर्क नहीं है, मगर बीज का व्रत सूर्वास्त के बाद चन्द्रदर्शन के बाद ही छोड़ा जाता है।
यदि बादलों के कारण चन्द्रदर्शन नहीं हो सके तो बाबा की ज्योति का दर्शन करके भी व्रत छोड़ा जा सकता है।
व्रत छोड़ने से पहले साफ लोटे में शुद्ध जल भर लेवें और देशी घी की बाबा की ज्योति उपलों के अंगारों की करें।
इस ज्योति में चूरमे का बाबा को भोग लगावें। जल वाले लोटे में ज्योति की थोड़ी भभूति मिलाकर पूरे घर में छिड़क देवें।
तत्पश्चात शेष चरणामृत का स्वयं भी आचमन करें व वहां उपस्थित अन्य लोगों को भी चरणामृत दें। चूरमे का प्रसाद लोगों को बांट देवें।
इसके बाद पांच बार बाबा के बीज मंत्र का मन में उच्चारण करके व्रत छोड़ें। इस तरह पूरे मनोयोग से किये गये व्रत से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। किसी भी विपति से रक्षा होती है व रोग-शोक से भी बचाव होता है।
बाबा रामदेव जी का बीज मंत्र
नम्रो भगवते नेतल नाथाय, सकल रोग हराय सर्व सम्पति कराय, मम मनोभिलाषितं देहि देहि कार्यम् साधय, ॐ नमो रामदेवाय स्वाहा॥
साम्प्रदायिक सद्भावना के प्रतीक थे बाबा रामदेव जी
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥४-८॥
श्रीमद्भागवत गीता चतुर्थ अध्याय
शास्त्रों में भी लिखा गय है कि जब-जब धर्म की हानि व अधर्म का बोलबाला होता है तब संसार की विधिन्न समस्याओं का निवारण करने भगवान स्वयं अवतरित होते हैं। उसी फरम्परा का निर्वाह करने के लिए ही बाबा रामदेवजी ने ठाकुर अजमलजी तुँवर के घर अवतार लिया था।
रामदेवजी के अवतार के समय समाज में कई तरह की रूढ़िवादिता कायम थी और मरूषर क्षेत्र में एक भयानक भैरव नाम के दैत्य ने आतंक मचा रखा था।
बाबा रामदेवजी ने भैरव दैत्य को तो नियंत्रण में किया ही, कई सामाजिक सुधार भी किए। उस समय समाज में ऊंच नीच व अस्पृश्यता का काफी बोलबाला था।
बाबा रामदेवजी ने इस बुराई का जमकर विरोध किया व अछूत समझे जाने वाले वर्ग के लोगों को गले लगाया और समाज को यह संदेश दिया कि परमात्मा द्वार रचित सृष्टि में अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है।
हालांकि उस वक्त बाबा रामदेवजी के रिश्तेदारों तक ने उनका जमकर विरोध किया और उनसे सामाजिक संबंध तोड़ने का ऐलान कर दिया।
उनके द्वारा शुरू किया गया अछूतोद्वार आज भारतीय समाज में अत्यक्ष परिलक्षित हो रहा है। वर्तमान में बाबा रामदेवजी के विचारों को आज की लोकतांत्रिक अवधारणा से तुलना करें तो हमें ज्ञात होगा कि आज की इस अवस्था की जुरूआत बाबा रामदेव जी ने अपने जीवन काल से ही शुरू कर दी थी।
श्री बाबा यामदेवजी साम्प्रदायिक एकता के प्रतीक है और उनको हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, बौद्ध व पारसी समान रूप से मानते हैं।
क्योंकि बाबा रामदेवजी ने मानव मात्र के कल्याण की खातिर अवतार लिया व बिना किसी भेदभाव के समाज के सभी वर्ग के लोगों का मार्मदर्शन किया।
वर्तमान में बाबा रामदेवजी के विचारों का अधिक प्रचार कर समाज व शासन की च्वलन्त समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु बाबा रामदेवजी के जीवन पर कई विद्वान लेखकों द्वार लिखित सामग्री का आवश्यक प्रचार किया जाए ताकि समाज को यह जानकारी मिले कि बाबा रामदेवजी मात्र अहूतों के ही देवता नहीं थे अपितु समस्त समाज के लिए एक नह चेतना थे।
रामदेवजी की आरती
जय अजमल लाला आरती लिरिक्स
जय अजमल लाला,प्रभू जय अजमल लाला। भक्त काज कलयुग में,लीन्हो अवतारा।। ॐ जय अजमल लाला
अश्वन की असवारी सोवे, केशरिया जामा। शीश तुर्रो हद सोवे, हाथ में लिये भाला।। ॐ जय अजमल लाला
डूबत जहाज तैराई, भैरव देत्य मारा। कृष्ण कला भय भंजन, राम रुणीचे वाला। ॐ जय अजमल लाला
अन्धन को प्रभु नेत्र देते हैं, कोढ़न को काया। बांझन पुत्र खिलावे, निर्धन को माया।। ॐ जय अजमल लाला
नाथ द्वारका धाम से चलकर, धोरा में आया। चार कूंट चऊदीश में, नेजा फहराया।। ॐ जय अजमल लाला
जब जब भीड़ पड़ी भक्ता पर, दौड़ दौड़ आया। जहर भरे जीवन में, अमृत बरसाया।। ॐ जय अजमल लाला
आरती रामदेव जी की, जो कोई नर गावे। कटे पाप जन जन का, विपदा मिट जावे।। ॐ जय अजमल लाला
ॐ जय अजमल लाला, प्रभु जय अजमल लाला। बाबा राम रूणीचे वाला, बाबा लीले घोड़े वाला, बाबा मेंणादे का लाला, बाबा धोली ध्वजा वाला, भक्त काज कलयुग में, लीन्हो अवतारा।। ॐ जय अजमल लाला
पिछम धरा सु म्हारा पीरजी
हरजी भाटी द्वारा रचित
पिचम धरा सूं म्हारा पीर जी पधारिया आरती री वेळा पधारो अजमाल रा, दर्शन री बलिहारी दूर दूर सूं आवे जातरू, निमण करे नर नारी
ओ पिचम धरा सूं म्हारा, पीर जी पधारिया घर अजमल अवतार लियो लांछा ने सुगणा करे हर री आरती अरे हरजी भाटी उबा चँवर ढोळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
पिचम धरा सूं म्हारा, पीर जी पधारिया घर अजमल अवतार लियो अरे लांछा ने सुगणा करे हर री आरती हरजी भाटी उबा चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
अरे घी री तो मिठाई बाबा, चडे थारे चुरमो … (२) धुंपा री मेहेंकार उडे, हे धुंपा री मेहेंकार उडे लांछा ने सुगणा करे हर री आरती हरजी भाटी उबा चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
अरे गंगा रे जमुना, बेहवे सरस्वती … (२) रामदेवजी बाबो स्नान करे … (२) लांछा ने सुगणा करे हर री आरती ए हरजी भाटी चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
अरे दूरा रे देशा रा, आवे थारे जातरू … (२) अरे बापजी री दरगाह आगे निमण करे … (२) लांछा ने सुगणा करे हर री आरती ओ हरजी भाटी चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
ढोल नगाडा धणी रे नौबट बाजे … (२) अरे झालर री रे झणकार पड़े … (२) अरे लांछा ने सुगणा बाई करे हर री आरती ओ हरजी भाटी चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
ओ खम्मा खम्मा खम्मा रे, कँवर अजमाल रा घर अजमल अवतार लियो लांछा ने सुगणा करे हर री आरती अरे हरजी भाटी उबा चँवर ढोळे लांछा ने सुगणा करे हर री आरती
हो हो हरी चरणों में भाटी हरजी बोले … (२) अरे नव खंडों में निशाण घुरें नव रे खण्डाँ में निशान घूरे अरे हरी चरणों में बहती हरजी बोले नव रे खान्डाँ में निशान घूरे लांछा ने सुगणा बाई करे हर री आरती ओ हरजी भाटी चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती … (२)
आन्धळिया ने आँख दिनी, पान्गळिया ने पाँव जी … (२) हे कोडिया रो कळंक झडायो जी लांछा ने सुगणा बाई करे हर री आरती ओ हरजी भाटी चँवर ढुळे वैकुंठा में बाबा होवे थारी आरती
ओ वारी वारी वारी रे कँवर तपधारी … (२)
खम्मा-खम्मा हो रामा रूनिचे रा धनिया
खम्मा-खम्मा हो रामा रूनिचे रा धनिया।। थाने तो ध्यावे आखो मारवाड हो, आखो गुजरात हो अजमाल्जी रा कवरा…
भादुरेडी दूज ने चमकियो जी सितारो।। पालनिया मे झूलने आयो पालन हरो।। दुवरिका रा नाथ झूले पालनिया हो रामा दुवरिका रा नाथ झूले पालनिया,हो जमाल्जी रा कवरा.
बाडोरा विरमदेव छोटा रामदेवजी।। धोररी धरती मे आया,आया रामपीरजी।। कूम-कूरा पगलिया मन्डिया आग्निया हो रामा कूम-कू रा पग्लिया माध्िया आग्निया,हो अजमाल्जी रा कवरा
अरे सिरपे कीलंगी-तूररो केसरिया हे जामो।। भागता री भीड़ आवे भोलो पियर रामो।। भागता रो मान बडावलिया हो रामा भागता रो आन बड़वलिया,हो जमाल्जी रा कवरा
माता मेना दे ज्यारा पीता आजमल्जी सुगनारा बीर रानी नेतल रा भरतार जी जगमग ज्योत जागवानिया हो रामा जगमग ज्योत जागवानिया , हो जमाल्जी रा कवरा
दिन बिटिया राता बीती बाबा थाने फेरता।। बरसारा रा बरस बिटिया माला तरी फेरता।। हातरी दुखानने लागी हूओ.ऊ.ऊ.ओ हातरी दुखानने लागी आगलिया हो बाबा आगलिया,अजमाल्जी रा कवरा
डाली बाई बाबा थारा पग्ल्या पखारसी लछा और सुगना बाई करे हर की आरती हर्जी भाटी रे मन भवनिया हो रामा हर्जी भाटी रे मन भवनिया, अजमाल्जी रा कवरा।।
श्री रामदेव चालीसा
।। दोहा ।। जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार। लाज रखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार।
दीन बन्धु किरपा करो, मोर हरो संताप। स्वामी तीनो लोक के, हरो क्लेश, अरू पाप।
।।चैपाई।।
जय जय रामदेव जयकारी। विपद हरो तुम आन हमारी।। तुम हो सुख सम्पति के दाता। भक्त जनो के भाग्य विधाता।।
बाल रूप अजमल के धारा। बन कर पुत्र सभी दुख टारा।। दुखियों के तुम हो रखवारे। लागत आप उन्हीं को प्यारे।।
आपहि रामदेव प्रभु स्वामी। घट घट के तुम अन्तरयामी।। तुम हो भक्तों के भयहारी। मेरी भी सुध लो अवतारी।।
जग में नाम तुम्हारा भारी। भजते घर घर सब नर नारी।। दुःख भंजन है नाम तुम्हारा। जानत आज सकल संसारा।।
सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी। तुम हो जग के अन्तरयामी।। कलियुग में प्रभु आप पधारे। अंश एक पर नाम है न्यारे।।
तुम हो भक्त जनों के रक्षक। पापी दुष्ट जनों के भक्षक।। सोहे हाथ आपके भाला। गल में सोहे सुन्दर माला।।
आप सुशोभित अश्व सवारी। करो कृपा मुझ पर अवतारी।। नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे। पाप अविधा सब दुख नाशे।।
तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे। नित्य बसो प्रभु हिये हमारे।। लीला अपरम्पार तुम्हारी। सुख दाता भय भंजन हारी।।
निर्बुद्धी भी बुद्धी पावे। रोगी रोग बिना हो जावे।। पुत्र हीन सुसन्तति पावे। सुयश ज्ञान करि मोद मनावे।।
दुर्जन दुष्ट निकट नही आवे। भूत पिशाच सभी डर जावे।। जो काई पुत्रहीन नर ध्यावे। निश्चय ही नर वो सुत पावे।।
तुम ने डुबत नाव उबारी। नमक किया मिसरी को सारी।। पीरों को परचा तुम दिना। नींर सरोवर खारा किना।।
तुमने पत्र दिया दलजी को।ज्ञान दिया तुमने हरजी को।। सुगना का दुख तुम हर लीना। पुत्र मरा सरजीवन किना।।
जो कोई तमको सुमरन करते। उनके हित पग आगे धरते।। जो कोई टेर लगाता तेरी। करते आप तनिक ना देरी।।
विविध रूप धर भैरव मारा। जांभा को परचा दे डारा।। जो कोई शरण आपकी आवे। मन इच्छा पुरण हो जावे।।
नयनहीन के तुम रखवारे। काढ़ी पुगंल के दुख टारे।। नित्य पढ़े चालीसा कोई। सुख सम्पति वाके घर होई।।
जो कोई भक्ति भाव से ध्याते। मन वाछिंत फल वो नर पाते।। मैं भी सेवक हुं प्रभु तेरा। काटो जन्म मरण का फेरा।।
जय जय हो प्रभु लीला तेरी । पार करो तुम नैया मेरी।। करता नन्द विनय विनय प्रभु तेरी। करहु नाथ तुम मम उर डेरी
।। दोहा।।
भक्त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़। विनती है प्रभु आपसे नन्द करे कर जोड़।
यह चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय। सब वाछिंत फल पाये वो सुख सम्पति घर होय।
रामदेवरा कैसे पहुंचे?
रामदेवरा रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा हुआ है। NH 11 रामदेवरा को छूती हुई निकलती है। नजदीकी एयरपोर्ट जोधपुर (180 किमी) और जैसलमेर (108 किमी) में स्थित है।
दिल्ली से सीधे रेल द्वारा रामदेवरा पंहुचा जा सकता है। भारत में कहीं से भी जोधपुर किसी भी माध्यम से पहुंचा जा सकता है।
जोधपुर से रामदेवरा 180 किमी है, जो कि रेल, बस या निजी वाहन की सुविधा से पहुंचा जा सकता है।
ट्रेन का नाम
जोधपुर से रवाना होने का समय
रामदेवरा पहुंचने का समय
चलने का दिन
(22931) Bandra Terminus – Jaisalmer SF Express
04:00 AM
06:52 AM
शनिवार
(14804) Sabarmati – Jaisalmer Express
06:50 AM
09:33 AM
नियमित
(04826) Jodhpur – Jaisalmer Passenger Special
01:30 PM
05:02 PM
नियमित
(15014) Ranikhet Express
04:55 PM
07:38 PM
नियमित
(14646) Shalimar Express
11:00 PM
02:30 AM
रविवार, मंगलवार, बुधवार, शुक्रवार
FAQ
बाबा रामदेव जी का जन्म कब हुआ?
बाबा रामदेव जी का जन्म चैत्र सुदी पंचमी, विक्रम संवत 1409 को रामदेवरा में हुआ था।
बाबा रामदेव का जन्म कहां हुआ था?
बाबा रामदेव का जन्म रामदेवरा (राजस्थान) में हुआ था।
लोक देवता रामदेव जी के गुरु का नाम क्या था?
लोक देवता रामदेव जी के गुरु का नाम गुरु बालीनाथ था।
बाबा रामदेव जी किस जाति के थे?
बाबा रामदेव जी तंवर (राजपूत) जाति के थे।
रामदेव जी के माता पिता का क्या नाम था?
रामदेव जी के पिता का नाम राजा अजमाल जी और माता का नाम राणी मैनादे था।
बाबा रामदेव जी ने समाधि कब ली थी?
बाबा रामदेव जी ने अपने 33 वर्ष की अल्प आयु में अनेक चमत्कार और समाज सुधार के कार्य कर वर्तमान रामसरोवर की पाल पर भादवा सुदी एकादशी विक्रम संवत 1442 को जीवित समाधि ली।
बाबा रामदेव जी के कितने पुत्र थे?
बाबा रामदेव जी के सादोजी और देवोजी (दो पुत्र) थे।
राजा अजमल किस लोक देवता के पिता थे?
राजा अजमल लोक देवता बाबा रामदेवजी के पिता थे।
अंतिम शब्द
इस लेख में लोक देवता बाबा रामदेव का जीवन परिचय, बाबा रामदेवजी का इतिहास, उनका जन्म, परिवार, समाधी आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
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