बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास और जीवन परिचय

जब-जब पृथ्वी पर अधर्म, पाप, अस्यृश्यता आदि ने अपना आधिपत्य स्थापित किया तब-तब स्वयं प्रभु ने कभी राम, कभी

इस लेख में हम बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास विस्तार से जानेंगे। जिसमें रामदेव जी का जन्म कब हुआ, बाबा रामदेव जी का जन्म स्थान, बाबा रामदेव जी के परिवार, विवाह, संतान, बाबा रामदेवजी के पर्चे, बाबा रामदेव जी की समाधी आदि के बारे में जानेंगे।

बाबा रामदेव जी का जीवन परिचय एक नजर में

नाम बाबा रामदेव जी
अन्य नाम रामसा पीर, रूणीचा रा धणी, बाबा रामदेव
जन्म चैत्र सुदी पंचमी, विक्रम संवत 1409
जन्मस्थान रूणीचा (रामदेवरा), राजस्थान
जीवनकाल 33 वर्ष
पिता अजमल जी तंवर
माता मैनादे
भाई बीरमदेव
बहन सगुना और लांछा (चचेरी बहनें)
पत्नी नैतलदे (विक्रम संवत 1426)
संतान सादोजी और देवोजी (दो पुत्र), फूल कँवर (पुत्री)
मुख्य-मंदिर रामदेवरा, जैसलमेर (राजस्थान)
प्रसिद्धि लोकदेवता, समाज सुधारक
वंश तंवर
सम्प्रदाय/पंथ कामड़िया
धर्म हिन्दू
घोड़े का नाम लीलो
गुरू बालीनाथ
निधन (जीवित समाधी) भादवा सुदी एकादशी, विक्रम संवत 1442
समाधी-स्थल रामदेवरा (रुणिचा नाम से विख्यात)

बाबा रामदेव जी का पुराना इतिहास (बाबा रामदेव की संपूर्ण कथा)

युगों-युगों से यह चलता आ रहा है कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म, पाप, अस्यृश्यता ने मृत्युलोक पर अपना साम्राज्य स्थापित किया तब ईश्वर ने स्वयं प्रकट होकर पापों से पृथ्वी को मुक्त करवाया है।

जब भी पृथ्वी पर पाप बढ़ाते हैं तब ईश्वर ने कभी राम, कभी

इसीलिए भैरव राक्षस का वध एवं समाज में सामाजिक समरसता की अलख जगाने के लिए बाबा रामदेव जी का अवतार हुआ।

यूं तो भारतवर्ष विभिन्न धर्म संप्रदाय एवं जातियों का देश रहा है, जहां समय-समय पर विभिन्न धर्म, संप्रदाय के अपने-अपने देवी-देवता, पीर-पैगम्बर एवं सती-जती हुए हैं तथा सभी धर्मों के अपने-अपने पूजा स्थल, मंदिर, चर्च, मस्जिद एवं मकबरे उनके अनुयायियों की आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र बने हुए हैं, जहां भक्तजन अपने-अपने तरीके से उन आस्था के केंद्रों पर अपनी मनोकामना पूरी होने एवं मन्नत मांगने हेतु श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने आपको धन्य समझते हैं।

मगर एक ऐसा पूर्ण महापुरुष जिसने जाति, धर्म, संप्रदाय, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी का भेद मिटाकर मानव मात्र को प्रभु का रूप समझ कर मानवता एवं सर्व धर्म समभाव का संदेश देकर कृष्ण के अवतार होने का अहसास कराया, जिसे मुसलमान रामसा पीर के नाम के मानकर उनकी समाधि पर शीश नवाते हैं तो हिन्दू कृष्णवतारी बाबा रामदेव मानकर अपने आप को पापों से मुक्त मानता है।

परमाणु परीक्षण के कारण विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बना चुके पोकरण कस्बे से 12 किमी. उत्तर दिशा में स्थित विख्यात नगरी रुणीचा धाम जिसे लोग रामदेवरा कहते हैं, वहां पर प्रति वर्ष भादवा महीने की शुक्ला द्वितीया से अंतर प्रांतीय मेला शुरू होता है, यह मेला दूज से एकादशी तक लगता है।

प्रचलित लोक गाथाओं के अनुसार अंतिम हिन्दू शासक द्वारा पूरा राज पाट अपने दोहिते पृथ्वीराज चौहान को सौंपकर तीर्थ यात्रा पर निकल गए।

तीर्थ यात्रा कर वापस राजधानी दिल्ली आने पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा राज गद्दी वापस देने से मनाकर देने पर धर्म प्रिय सम्राट अनंगपाल तोमर दिल्ली छोड़कर पाटन (सीकर) आकर अपनी अलग राजधानी बनाईं। उन्हीं अनंगपाल तोमर के वंशज अजमाल जी (तंवर) थे।



अजमाल जी तंवर के कोई संतान नहीं थी। इस कारण राजा अजमाल एवं उनकी राणी मैणादे हर समय संतान नहीं होने के कारण बैचेन एवं दुखी रहते थे।

अजमाल तंवर द्वारकाधीश भगवान कृष्ण के भक्त होने के कारण कई बार द्वारिका की यात्रा कर चुके थे।

एक बार वर्षा के मौसम में अजमल जी सुबह-सुबह शौचादि से निवृत होकर वापस अपने महल की ओर आ रहे थे तो उन्हीं के गांव के किसान खेती करने के लिए अपने खेतों की तरफ जा रहे थे।

सामने से अजमल जी तंवर को आते देखा तो किसान वापस अपने घरों की तरफ मुड़ गए। अजमल जी आश्चर्यचकित हो गए और किसानों को बुलाकर वापस घरों की ओर मुड़ने का कारण पूछा तो किसानों ने घबराकर यूं ही बीज, बैल, हल आदि पीछे भूल जाने का बहाना बनाया।

मगर उस जवाब से अजमल संतुष्ट नहीं हुए और किसानों से कहा कि तुम जो भी बात हो सच-सच बता दो, तुम्हें सातों गुनाह माफ है।

तब किसानों ने बताया कि अन्नदाता आप निसंतान है और आप के सामने आ जाने के कारण अपशगुन हो गए हैं।



अजमलजी पर मानो पहाड़ टूट गया और मन ही मन अपने आपको कोसते हुए भगवान द्वारिकाधीश का स्मरण कर कहा कि प्रभु मैं जिस गांव का ठाकुर हूं, उस गांव के लोग मेरा मुंह तक नहीं देखना चाहते तो मेरा जीना बेकार है, यह सोच अजमल जी घर पहुंचे।

अजमल जी को दुखी देखकर रानी ने कारण पूछा तो सब बात अजमल ने रानी को बताई तो रानी भी बहुत दुखी हुई, मगर अपने दुख तो अंदर दबाकर अजमल जी से कहा कि आप एक बार द्वारिका जाकर भगवान श्री कृष्ण से विनती करें व अपनी मनोकामना जरूर पूरी होगी।

तब अजमल जी ने द्वारिका जाकर पागलों की भांति पुजारी से बोले कि बता तेरा भगवान कहां है?, नहीं तो तुझे और इस पत्थर को मूर्ति दोनों को तोड़ दूंगा तो पुजारी ने पागल समझ कर कहा कि सागर में जहां पर वो सबसे तेज जल भंवर पड़ रहा है, उस जगह समुद्र में भगवान आराम कर रहे हैं तो अजमल जी को तो भगवान पर दृढ़ विश्वास था, इसलिए श्रद्धा थी और वे सीधे समुद्र में कूद गए।

समुद्र में शेषनाग की शैया पर प्रभु के दर्शन कर अजमल जी भगवान द्वारिकाधीश से वर मांगा कि प्रभु मेरी ही प्रजा मेरा मुंह तक नहीं देखना चाहती है। इसलिए मेरे भी आप जैसा सुंदर पुत्र रत्न हो, भगवान द्वारिकाधीश ने कहा मेरे जैसा तो मैं ही हूं, तब अजमल जी तंवर ने कहा कि प्रभु आपको ही मेरे घर पुत्र रूप में आना होगा। यह वचन ले अजमलजी वापस आए।

प्रचलित लोक धारणाओं के अनुसार अजमल जी के घर पहले पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम बिरमदेव रखा गया और उसके बाद विक्रम संवत 1409 चैत्र सुदी पंचमी के दिन बाबा रामदेव जी का जन्म हुआ।

कलयुग के अवतारी बाबा रामदेव ने अपने शैशव काल में ही दिव्य चमत्कारों से देव पुरुष की प्रसिद्धि पा ली थी।



प्रचलित लोक गाथाओं के अनुसार बाबा रामदेव ने अपने बाल्यकाल में ही माता की गोद में दूध पीते हुए चूल्हे पर से उफनते हुए दूध के बर्तन को नीचे रखना, कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना, स्वारथिये सुथार को सर्पदंश से मरने के बाद वापस जिंदा करना आदि कई है।

ज्यों-ज्यों बाबा रामदेवजी किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे थे, उनके दैविक पुरुष होने के चर्चे दूर-दूर तक फैल रहे थे।

प्रचलित गाथा के अनुसार कृष्णावतार बाबा रामदेव जी भैरव राक्षस के आतंक को मिटाने के लिए ही पृथ्वी लोक पर अवतरित हुए थे।

एक दिन बाबा रामदेव जी अपने साथियों के साथ गेंद खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद को इतना दूर फैंक दिया कि सभी साथियों ने अपने आपको गेंद लाने में असमर्थता जताते हुए कहा कि आपको ही गेंद लानी पड़ेगी तो बाबा रामदेव गेंद लाने के बहाने वर्तमान पोकरण की घाटी पर स्थित साथलमेर आ कर भैरव के अत्याचारों से लोगों को मुक्त करवाना था।

बाबा रामदेव जी के बालक रूप में सुनसान पहाड़ी पर अकेले देखकर पहाड़ी पर धूना लगाए बैठे बालीनाथ जी ने देखा तो कहा कि बालक तू कहां से आया है, जहां से आया है वापस चला जा, यहां पर रात को भैरव राक्षस आएगा।

बालीनाथ जी ने कहा कि यह आदम खोर राक्षस तुझे खा जाएगा, तब बाबा रामदेव जी ने रात के समय वहां पर रुकने की प्रार्थना की तो बालीनाथ जी ने अपनी कुटिया (आश्रम) में पुरानी गुदड़ी ओढ़ाकर बालक रामदेव को चुपचाप सो जाने को कहा।



अर्द्धरात्रि के समय भैरव राक्षस ने वहां आकर बालीनाथ जी से कहा कि आप के पास कोई मनुष्य है, मुझे मानुषगंध आ रही है तो बालीनाथ जी ने भैरव से कहा कि यहां पर तो तूने बारह-बारह कोस तक तो पक्षी भी नहीं छोड़ा है मनुष्य कहां से आया।

तब बाबा रामदेव ने गुरु बाली नाथ द्वारा चुपचाप सो जाने का आदेश दिए जाने के कारण बोले तो कुछ नहीं, मगर अपने पैर से गुदड़ी को हिलाई तो भैरव की नजर गुदड़ी पर पड़ी तो गुदड़ी को खींचने लगा।

मगर बाबा के चमत्कार से गुदड़ी द्रौपदी के चीर की तरह बढ़ने लगी तो बालीनाथ जी महाराज ने सोचा कि यह कोई सामान्य बालक तो नहीं है जरूर कोई दिव्य बालक है।

गुदड़ी को खींचते-खींचते भैरव राक्षस हांफ कर भागने लगा तो बाबा रामदेव जी ने उठकर बालीनाथजी महाराज से आज्ञा लेकर बैरव राक्षस को वध कर लोगों को उसके आंतक से मुक्त किया।

भैरव राक्षस को वध करने के बाबा रामदेवजी भैरव राक्षस की गुफा से उत्तर दिशा की तरफ कुंआ खुदवा कर रुणीचा गांव बसाया।

बाबा रामदेवजी के विद्य चमत्कारों के चर्चें दूर-दूर तक सूर्य के प्रकाश की भांति फैलने लगे। उस समय मुगल साम्राज्य होने के कारण कट्टर पंथ भी चरम सीमा पर था।



एक बार बाबा रामदेव जी की परीक्षा लेने के लिए पांच पीर आये, उस समय बाबा रामदेव जी जंगल में घोड़ों को चरा रहे थे और पीरों को देखकर पूछा आप कहां से आएं है और कहां जायेंगे?

तो उन पीरों ने अपने आने का पूरा वृतांत सुनाया तो बाबा रामदेवजी ने बड़े आदर सत्कार के साथ उन पीरों को भोजन परोस कर पीरों से भोजन करने को कहा तो उन पांचों पीरों ने दूसरे के बर्तन में खाना खाने को मना करते हुए कहा कि हम तो अपने ही बर्तनों में भोजन करते है और उन बर्तनों को अपने मक्का (सऊदी अरब) पर ही भूल आए है।

तब बाबा रामदेव जी उनके द्वारा परीक्षा लेने की बात को समझते हुए तुरंत हाथ पसारा और वहीं कटोंरे उन पीरों को दिए और कहा कि अपने अपने कटोंरे को पहचान कर ले लो तो उन पीरों ने नमन करते हुए कहा कि हम तो पीर है, आप पीरों के भी पीर कह कर रामसापीर की उपाधि दी और कहा कि आज से मुसलमान भी आपको रामसापीर के नाम से मानेगें।

तब पीरों द्वारा भोजन करने के बाद दातुन करके दातुन की लकड़ियों से लगाई गई पांच पीपलियों के अवशेष आज भी रामदेवरा से पूर्व दिशा में 10 किमी. पांच पीपली स्थान पर दूर मौजूद है। वहां पर भी कई यात्री दर्शानार्थ जाते हैं। बाबा रामदेव दिव्य पुरुष होने के साथ-साथ एक महान समाज सुधारक और अछूतोद्वारक भी थे।

उस समय अस्पृश्यता एवं सांप्रदायिकता ने समाज को बुरी तरह जकड़ रखा था। मगर बाबा रामदेव ने क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर भी अछूत समझी जाने वाली जातियों को गले लगाया।

उनके घरों में जाकर उनके साथ भजन सत्संग करना दलित और हीन समझने जाने वाले लोगों के साथ उठने-बैठने को लेकर उनके रिश्तेदारों तक ने उनके यहां आना-जाना व बोलना बंद कर दिया था। मगर बाबा रामदेव जी ने इन सबकी परवाह किए बिना सामाजिक कुरितियों से जारी रखा।



उसी के फलस्वरूप अछूत समझी जाने वाली बाबा की अनन्य भक्त मती डालीबाई ने बाबा रामदेव से पहले समाधि ली। आज बाबा के भक्तों की संख्या पिछड़ी समझी जाने वाली जातियों में अधिक है।

बाबा रामदेव जी ने अपने 33 वर्ष की अल्प आयु में अनेक चमत्कार और समाज सुधार के कार्य कर वर्तमान रामसरोवर की पाल पर भादवा सुदी एकादशी विक्रम संवत 1442 को जीवित समाधि ली।